ebook PDF - Swadeshi Chikitsa Part 1 by Rajiv Dixit

Ayurvedic recipes for healthy and happy living. This ebook covers health topics from sushruta samhita and vagbhatt samhita. वागभट साहिता पर आधारित दिनचर्या (स्वदेशी चिकित्सा)


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आयुर्वेद के बारे में

वायु पिर्त्त कफश्येति त्रयों समासत:
विकृता 5 विवदुता देह ध्वन्ति ते वर्त्तयन्ति च ।
ते व्यापिनो 5पि ह्रन्नाम्योरधोमश्योह र्वसश्रया: । ।

अर्थ ८ वात, पिल्ल एव कफ ये तीन दोष शरीर में जाने जाले है । ये दोष यदि विकृत हा जायें तो शरीर को
हानि पहुंचाते है और मृत्यु का कारण बन जाले है । यदि ये वात, पिल्ल एव कफ सामान्य रूप रने सन्तुलन
में रहें तो शरीर की सभी क्रियाओं का संचालन करते हुये शरीर का रोपण करते है यद्यपि ये वात, पिल्ल कफ शरीर
के सभी मारो से रहते हैं लेकिन विशेष रूप से वात नाभि के नीचे वाले ‘माम से पिल्ल नाभि और हदय के बीच से कफ
हृदय से ऊपर वाले भाग से रहता है ।

वयो 5 होरात्रिभुक्तानां त्तेडन्तमध्यादिगा: क्रमात् ।

अर्थ : आयु के अल्ल में अर्थात वृद्धावस्था में वायु (बात) का प्रकोप होता है । युवा अवस्था में पिल्ल का असर
होता है । बाल्य अवस्था में कफ का असर होता है । इसी तरह दिन के प्रथम पहर अर्थात सुबह के समय
वारे का प्रभाव होता है । दिन के मध्य में पिल्ल का प्रभाव होता है । दिन के अल्ल में वात का प्रभाव होता
है । सुबह वा’ दोपहर क्रो पिल्ल और शाम कॉ वात (वायु) का असर होता है ।

विश्लेषण : जब व्यक्ति बाल्य अवस्था में होता है उस समय कफ श्री प्रधानता होती है । बवपन में मुख्य
भोजन दूध होता है । बालक को अधिक चुरिनराणिवृना नहीं होता है । बाल्य अवस्था से किसी भी तरह श्री
चिंता नहीं होती है । अत: शरीर से स्निग्ध, शीत जैसे गुणों रने युक्त कफ अधिक बनता है । युवा अवस्था में
शरीर से धातुओं का बनना अधिक होता है साथ श्री रक्त का निर्माण अधिक होता है । रक्त का निर्माण
यने में पिल्ल की सबसे बडी भूमिका होती है । युवा अवस्था में शारिरिक व्यायाम भी अधिक होता है । हसी
कारण भूख भी अधिक लगती है । ऐसी स्थिति में पिल्ल की अधिकता रहती है । युवा अवस्था में पिल्ल का
बढना ऋत जरूरी होता है । यदि पिल्ल ना बढ तो शरीर में रक्त श्री कमी हो जायेगी और शरीर का पुर
यने वाली धातुओं का भी निर्माण नहीं होगा । पिल्ल के गुण है । त्तीद्रण, उष्ण ।

वृद्धा अवस्था में शरीर क्षय होने लगता है । सभी धातुयें शरीर में कम होती जाती है । शरीर से रूक्षता
बढ जाती है । ऐसी स्थिति में शरीर से वायु (वात) का प्रभाव बढ जाता है । वायु का गुण रूक्ष एव राति है ।

समय विभाजन के अनुसार दिन के प्रथम प्रहर में शीत या ठंड की अधिकता होती है । हसकं
कारण शरीर में थोडा भारीपन होता है । इसी कारण वारे में वृद्धि होती है । दिन के दूसर प्रहर से और
मध्यकाल में सूर्य की किरणे काफी तेज़ हो जाती है । मर्मी बढ़ जाती है । इस फम पिल्ल अधिक हा जाता
है । अत: दिन के दूसरे प्रहर एव मध्यकाल में पिल्ल प्रबल होता है । दिन के तीसरे प्राप्त और अकाल सूर्य
किरणों के मन्द हो जाने के कारण वायु का प्रभाव बढता है । हसी तरह राति के प्रथम प्रहर में कफ की
वृद्धि होती है । रात्रि के दूसरे प्रहर में वात (यागु) की वृद्धि होती है । चूंकि रात्रि के तीसरे प्रहर या अन्तिम

1५।

Product Details

  • 107
  • Rajiv Dixit
  • 2,684
  • 9XJTS21D
  • Hindi
  • PDF
  • ShunyaFoundation
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